“उत्तर प्रदेश में वेस्ट-टू-एनर्जी प्लांट्स 2025 तक कचरे से बिजली और बायोगैस बनाएंगे, जिससे शहर स्वच्छ और पर्यावरण सुरक्षित होगा। लखनऊ और वाराणसी जैसे शहरों में नए प्रोजेक्ट्स शुरू हो रहे हैं, जो कचरा प्रबंधन और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देंगे। जानें कैसे ये तकनीक यूपी को हरा-भरा बनाएगी।”
उत्तर प्रदेश में कचरे से ऊर्जा: स्वच्छ शहरों की नई पहल
उत्तर प्रदेश सरकार ने कचरा प्रबंधन और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए वेस्ट-टू-एनर्जी (WTE) प्रोजेक्ट्स पर तेजी से काम शुरू किया है। हाल ही में, आंध्र प्रदेश के नगर प्रशासन और शहरी विकास मंत्री पी. नारायणा ने लखनऊ में एक WTE प्लांट का दौरा किया, जहां उन्होंने इसकी कार्यक्षमता और स्थायी ऊर्जा उत्पादन की प्रक्रिया का अध्ययन किया। यह प्लांट प्रतिदिन सैकड़ों टन कचरे को प्रोसेस करके बिजली और बायोगैस उत्पन्न करता है।
उत्तर प्रदेश में 150 मेगावाट से अधिक ऊर्जा उत्पादन की क्षमता है, जो डिस्टिलरीज, फूड प्रोसेसिंग इंडस्ट्रीज, डेयरियों, और पल्प-पेपर मिल्स जैसे औद्योगिक इकाइयों के कचरे से प्राप्त की जा सकती है। ये प्रोजेक्ट्स न केवल पर्यावरण को स्वच्छ रखने में मदद करते हैं, बल्कि उद्योगों की थर्मल और इलेक्ट्रिकल ऊर्जा जरूरतों को भी पूरा करते हैं। उत्तर प्रदेश न्यू एंड रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (UPNEDA) के अनुसार, बायोएनर्जी पॉलिसी 2022 के तहत 14 प्रोजेक्ट्स को मंजूरी दी गई है, जो बायोमास और बायोगैस आधारित ऊर्जा उत्पादन को बढ़ावा दे रहे हैं।
लखनऊ में हाल ही में शुरू हुए एक प्रोजेक्ट में, नगर निगम के सहयोग से 500-600 टन कचरे को प्रोसेस करने की क्षमता वाला प्लांट स्थापित किया गया है। यह प्लांट बायोमिथेनेशन तकनीक का उपयोग करता है, जिसमें जैविक कचरे को एनारोबिक डाइजेशन के माध्यम से बायोगैस में बदला जाता है। इस प्रक्रिया में लगभग 60% मीथेन और 40% कार्बन डाइऑक्साइड युक्त बायोगैस बनता है, जिसे बिजली उत्पादन या वाहनों के लिए ईंधन के रूप में उपयोग किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यह प्रक्रिया जैविक खाद भी उत्पन्न करती है, जो कृषि के लिए उपयोगी है।
वाराणसी में भी एक WTE प्लांट की स्थापना के लिए 2019 में एक MoU साइन किया गया था, और अब यह प्रोजेक्ट अंतिम चरण में है। यह प्लांट न केवल शहर के कचरे को कम करेगा, बल्कि स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन और स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन में भी योगदान देगा। हालाँकि, विशेषज्ञों का कहना है कि इन प्लांट्स की सफलता के लिए कचरे का सही ढंग से पृथक्करण (segregation) और उसकी गुणवत्ता महत्वपूर्ण है। यदि कचरा अनसैग्रिगेटेड है या उसमें नॉन-बायोडिग्रेडेबल सामग्री की मात्रा अधिक है, तो ये प्लांट्स अपनी पूरी क्षमता से काम नहीं कर पाते।
केंद्र सरकार भी नेशनल बायोएनर्जी प्रोग्राम के तहत WTE प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा दे रही है। इंडियन रिन्यूएबल एनर्जी डेवलपमेंट एजेंसी (IREDA) इन प्रोजेक्ट्स के लिए वित्तीय सहायता प्रदान कर रही है, जिसमें नए बायोगैस प्लांट्स के लिए प्रति मेगावाट 75 लाख रुपये और मौजूदा इकाइयों के लिए 50 लाख रुपये की सहायता शामिल है। उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में यह सहायता 20% अधिक है, क्योंकि इसे विशेष श्रेणी के राज्यों में गिना जाता है।
हालाँकि, WTE प्लांट्स को लेकर कुछ चुनौतियाँ भी हैं। दिल्ली के ओखला WTE प्लांट जैसे कुछ प्रोजेक्ट्स को प्रदूषण फैलाने के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है। विशेषज्ञों का कहना है कि बिना उचित तकनीक और कचरे के पृथक्करण के, ये प्लांट्स हानिकारक उत्सर्जन जैसे पार्टिकुलेट मैटर और गैसीय प्रदूषक छोड़ सकते हैं। उत्तर प्रदेश सरकार इन समस्याओं से बचने के लिए आधुनिक तकनीकों और सख्त पर्यावरणीय मानकों का पालन करने पर जोर दे रही है।
यूपी के ये प्रयास न केवल कचरा प्रबंधन को बेहतर बनाएंगे, बल्कि स्वच्छ और हरित ऊर्जा के उत्पादन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। इससे न केवल शहर स्वच्छ होंगे, बल्कि ग्रामीण और शहरी समुदायों की ऊर्जा निर्भरता भी कम होगी।
Disclaimer: यह लेख समाचार, रिपोर्ट्स, और विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है। जानकारी को नवीनतम डेटा के साथ अपडेट किया गया है, लेकिन पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे स्थानीय प्रशासन या संबंधित विभागों से नवीनतम अपडेट्स की पुष्टि करें।