गंगा को स्वच्छ करने के लिए यूपी को मिले 2025 में कितने करोड़? अब जानें!

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“2025 में उत्तर प्रदेश को गंगा सफाई के लिए भारी फंड मिला है। नमामि गंगे प्रोग्राम के तहत हजारों करोड़ रुपये आवंटित किए गए, लेकिन क्या यह राशि गंगा को स्वच्छ कर पाएगी? विशेषज्ञों का कहना है कि चुनौतियां अभी भी बरकरार हैं। जानें नए प्रोजेक्ट्स, फंड उपयोग और गंगा की स्थिति पर ताजा अपडेट।”

गंगा सफाई: यूपी के लिए 2025 में कितना फंड, क्या होगा असर?

उत्तर प्रदेश में गंगा नदी की सफाई के लिए 2025 में नमामि गंगे प्रोग्राम के तहत 3,400 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया गया है। यह राशि 2014-15 से 2024-25 तक के 23,424.86 करोड़ रुपये के कुल बजट का हिस्सा है। नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा (NMCG) ने इस फंड का उपयोग 457 प्रोजेक्ट्स के लिए किया, जिनमें से 104 प्रोजेक्ट्स उत्तर प्रदेश में हैं। इनमें सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स (STPs), रिवर फ्रंट मैनेजमेंट, और बायोडायवर्सिटी कंजर्वेशन शामिल हैं।

हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की स्थिति में सुधार के बावजूद, चुनौतियां बरकरार हैं। 2023 में, सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने बताया कि गंगा के कई हिस्सों में पानी स्नान के लिए उपयुक्त है, लेकिन 71% मॉनिटरिंग स्टेशनों पर फीकल कोलीफॉर्म बैक्टीरिया का स्तर अभी भी “खतरनाक” है। इसके अलावा, औद्योगिक कचरा और अनुपचारित सीवेज नदी में बहाया जा रहा है।

NMCG ने 2026 तक 7,000 मिलियन लीटर प्रतिदिन (MLD) की सीवेज ट्रीटमेंट क्षमता स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। वर्तमान में, उत्तर प्रदेश में 2,665 MLD की क्षमता वाले STPs चालू हैं, लेकिन 97 शहरों में 2,953 MLD सीवेज उत्पन्न होता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा की सफाई के लिए न केवल फंड, बल्कि बेहतर गवर्नेंस और सामुदायिक भागीदारी की जरूरत है।

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2023 में, संयुक्त राष्ट्र ने नमामि गंगे को विश्व के टॉप 10 रेस्टोरेशन प्रोजेक्ट्स में शामिल किया। गंगा में डॉल्फिन की संख्या 2,000 से बढ़कर 4,000 हो गई है, जो पानी की गुणवत्ता में सुधार का संकेत है। फिर भी, वाराणसी जैसे शहरों में अस्सी और वरुणा जैसी सहायक नदियां अभी भी सीवेज नालों की तरह इस्तेमाल हो रही हैं।

2025 में, यूपी में तीन नए सीवेज मैनेजमेंट प्रोजेक्ट्स को 661 करोड़ रुपये की मंजूरी मिली। इसके अलावा, इलेक्ट्रिक क्रेमेटोरियम और फ्रेशवाटर इकोलॉजी में M.Sc. कोर्स जैसे इनोवेटिव प्रोजेक्ट्स भी शुरू किए गए हैं। लेकिन, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने हाल ही में यूपी पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड को गंगा में प्रदूषण के लिए फटकार लगाई।

स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद जैसे पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने गंगा की सफाई के लिए अपनी जान तक दी, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि अवैध खनन और डैम जैसी समस्याएं अभी भी बनी हुई हैं। नमामि गंगे के तहत स्थानीय समुदायों को शामिल करने के लिए ‘अर्थ गंगा’ जैसी पहल शुरू की गई, जिसमें प्राकृतिक खेती और पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।

फंड के बावजूद, गंगा की सफाई धीमी गति से चल रही है। 2023 तक, केवल 20% सीवेज का उपचार हो पा रहा था, जो 2026 तक 60% तक पहुंचने की उम्मीद है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि गवर्नेंस और मॉनिटरिंग में सुधार नहीं हुआ, तो गंगा का पानी पीने योग्य बनने में दशकों लग सकते हैं।

Disclaimer: यह लेख विभिन्न समाचार स्रोतों, सरकारी रिपोर्ट्स, और विशेषज्ञों के विश्लेषण पर आधारित है। डेटा और तथ्य NMCG, CPCB, और अन्य विश्वसनीय स्रोतों से लिए गए हैं। यह लेख केवल सूचना के लिए है और इसका उद्देश्य किसी भी संगठन या नीति की आलोचना नहीं है।

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