“उत्तर प्रदेश में सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूल सोलर पैनल से ऊर्जा आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ रहे हैं। 2021-22 के UDISEPlus डेटा के अनुसार, 4.9% सरकारी और 9.9% सहायता प्राप्त स्कूलों में सोलर पैनल लगाए गए हैं। यह पहल बिजली बिल कम करती है, डिजिटल शिक्षा को बढ़ावा देती है और पर्यावरण संरक्षण को प्रोत्साहित करती है।”
यूपी में सोलर पैनल: स्कूलों में हरी ऊर्जा की रोशनी
उत्तर प्रदेश, भारत का सबसे अधिक आबादी वाला राज्य, शिक्षा के क्षेत्र में एक हरित क्रांति की ओर बढ़ रहा है। सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में सोलर पैनल की स्थापना ने न केवल ऊर्जा की कमी को दूर किया है, बल्कि स्कूलों को आधुनिक शिक्षा सुविधाओं से जोड़ने में भी मदद की है। UDISEPlus 2021-22 के आंकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 4.9% सरकारी स्कूलों और 9.9% सहायता प्राप्त स्कूलों ने सोलर पैनल को अपनाया है, जो शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है।
सोलर पैनल की स्थापना से स्कूलों को कई लाभ मिल रहे हैं। सबसे पहले, यह बिजली की लागत को काफी हद तक कम करता है। पहले जहां स्कूलों को हर तिमाही में भारी बिजली बिल का सामना करना पड़ता था, वहीं अब सोलर पैनल से उत्पन्न ऊर्जा ने इन खर्चों को लगभग शून्य कर दिया है। उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल के सनशाइन स्कूल्स प्रोजेक्ट से प्रेरणा लेते हुए, यूपी के स्कूल भी अतिरिक्त बिजली को नेशनल ग्रिड में भेजकर आर्थिक लाभ कमा रहे हैं। इससे स्कूलों को अतिरिक्त फंड मिलता है, जिसे वे शिक्षकों की भर्ती, बुनियादी ढांचे के सुधार और पर्यावरणीय गतिविधियों जैसे वृक्षारोपण में निवेश कर सकते हैं।
दूसरा बड़ा लाभ है डिजिटल शिक्षा का विस्तार। सोलर पैनल से उत्पन्न स्थिर बिजली आपूर्ति ने स्कूलों में कंप्यूटर, प्रोजेक्टर और स्मार्ट टीवी जैसे उपकरणों का उपयोग संभव बनाया है। यूपी के ग्रामीण क्षेत्रों में, जहां बिजली की आपूर्ति अनियमित होती है, सोलर पैनल ने डिजिटल कक्षाओं को संभव बनाया है। ASER 2022 की रिपोर्ट के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में 92.4% स्कूलों में बिजली कनेक्शन होने के बावजूद, केवल 73.1% में ही नियमित बिजली उपलब्ध थी। सोलर पैनल इस अंतर को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।
इसके अलावा, सोलर पैनल पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा दे रहे हैं। स्कूलों में सोलर सिस्टम को देखकर छात्र नवीकरणीय ऊर्जा के महत्व को समझ रहे हैं। कई स्कूलों ने सोलर ऊर्जा को अपने पाठ्यक्रम में शामिल किया है, जिससे छात्रों को विज्ञान, पर्यावरण अध्ययन और गणित जैसे विषयों में व्यावहारिक ज्ञान मिल रहा है। उदाहरण के लिए, सोलर पैनल की कार्यप्रणाली को समझने के लिए छात्र रियल-टाइम डेटा एनालिसिस और ऊर्जा खपत की गणना जैसे प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं।
हालांकि, चुनौतियां भी हैं। सोलर पैनल की स्थापना में प्रारंभिक लागत अधिक होती है, जो कई स्कूलों के लिए बाधा बनती है। इसके अलावा, रूफटॉप की संरचनात्मक मजबूती, छायांकन और रखरखाव जैसे तकनीकी मुद्दे भी सामने आते हैं। यूपी सरकार ने इस दिशा में कदम उठाए हैं, जैसे कि केंद्र सरकार की 15% केंद्रीय वित्तीय सहायता (CFA) योजना, जो सोलर रूफटॉप प्रोजेक्ट्स को बढ़ावा देती है। फिर भी, ग्रामीण स्कूलों में संसाधनों की कमी और प्रशिक्षित कर्मचारियों की आवश्यकता इस प्रक्रिया को धीमा कर रही है।
सोलापुर जिले का उदाहरण यूपी के लिए प्रेरणादायक है। वहां, Exim Bank के CSR फंडिंग के समर्थन से, 19 स्कूलों में सोलर पैनल लगाए गए हैं, जिससे 9,000 छात्रों को लाभ हुआ है। गोरेनवस्ती जिला परिषद स्कूल में 1 किलोवाट सोलर पैनल ने बिजली कटौती की समस्या को खत्म कर दिया और स्मार्ट टीवी के जरिए शैक्षिक सामग्री तक पहुंच आसान हो गई।
यूपी में सोलर पैनल की यह पहल न केवल शिक्षा को सशक्त बना रही है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण और ऊर्जा आत्मनिर्भरता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। जैसे-जैसे सोलर तकनीक सस्ती और सुलभ होती जाएगी, यह उम्मीद की जा रही है कि यूपी के और स्कूल इस हरित क्रांति का हिस्सा बनेंगे।
Disclaimer: यह लेख हाल के समाचारों, UDISEPlus 2021-22 डेटा, ASER 2022 रिपोर्ट और विश्वसनीय वेब स्रोतों पर आधारित है। जानकारी को सटीक और तथ्यात्मक रखने का प्रयास किया गया है।