“उत्तर प्रदेश सरकार ने 2025 में प्रदूषण नियंत्रण के लिए भारी-भरकम फंड आवंटित किया है। साफ हवा योजना के तहत, औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन प्रदूषण और धूल नियंत्रण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा। यह कदम न केवल स्वास्थ्य सुधार बल्कि पर्यावरण संरक्षण के लिए भी महत्वपूर्ण है। जानें, कैसे बदलेगी यूपी की हवा?”
उत्तर प्रदेश में स्वच्छ हवा: प्रदूषण नियंत्रण के लिए नया फंड
उत्तर प्रदेश, जो भारत के सबसे प्रदूषित राज्यों में से एक है, ने 2025 में अपनी साफ हवा योजना को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। हाल के आंकड़ों के अनुसार, यूपी सरकार ने प्रदूषण नियंत्रण के लिए इस वर्ष लगभग 500 करोड़ रुपये का बजट आवंटित किया है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 20% अधिक है। यह फंड मुख्य रूप से औद्योगिक उत्सर्जन, वाहन प्रदूषण, और निर्माण स्थलों से उत्पन्न होने वाली धूल को कम करने पर केंद्रित है।
लखनऊ, कानपुर, और आगरा जैसे शहर, जो लगातार खराब वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के लिए कुख्यात हैं, इस योजना के प्राथमिक लाभार्थी होंगे। विशेषज्ञों का कहना है कि उत्तर प्रदेश में PM2.5 और PM10 जैसे प्रदूषकों का स्तर WHO के दिशानिर्देशों से कई गुना अधिक है, जिसके कारण श्वसन रोगों और हृदय संबंधी समस्याओं में वृद्धि हुई है।
यूपी सरकार ने इस फंड का उपयोग कई रणनीतियों के लिए किया है। सबसे पहले, औद्योगिक इकाइयों को कम उत्सर्जन वाली तकनीकों को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए सब्सिडी और तकनीकी सहायता प्रदान की जाएगी। दूसरा, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) को बढ़ावा देने के लिए चार्जिंग स्टेशनों की संख्या में वृद्धि और डीजल वाहनों पर सख्ती की जा रही है। तीसरा, निर्माण स्थलों पर धूल नियंत्रण के लिए ग्रीन नेट और पानी के छिड़काव को अनिवार्य किया गया है।
हाल ही में, यूपी के पर्यावरण विभाग ने ‘क्लीन एयर फोरम’ में हिस्सा लिया, जहां स्थानीय समाधानों और क्षेत्रीय साझेदारी पर जोर दिया गया। यह फोरम न केवल नीतिगत बदलावों को प्रोत्साहित करता है, बल्कि समुदाय-आधारित पहलों को भी बढ़ावा देता है। उदाहरण के लिए, लखनऊ में कुछ गैर-लाभकारी संगठनों ने HEPA फिल्टर और वायु गुणवत्ता सेंसर स्थापित करने के लिए फंड प्राप्त किया है, जो विशेष रूप से बच्चों और बुजुर्गों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद करेगा।
इसके अलावा, यूपी सरकार ने वायु गुणवत्ता निगरानी को मजबूत करने के लिए नए मॉनिटरिंग स्टेशन स्थापित करने की योजना बनाई है। ये स्टेशन वास्तविक समय में प्रदूषण के स्तर को ट्रैक करेंगे, जिससे त्वरित कार्रवाई संभव हो सकेगी। विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल नीतिगत निर्णयों को बेहतर बनाएगा, बल्कि जनता में जागरूकता भी बढ़ाएगा।
हालांकि, चुनौतियां भी कम नहीं हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि फंड का प्रभावी उपयोग तभी संभव है जब इसे पारदर्शी तरीके से लागू किया जाए। पिछले कुछ वर्षों में, प्रदूषण नियंत्रण योजनाओं में भ्रष्टाचार और देरी की शिकायतें सामने आई हैं। इसके अलावा, ग्रामीण क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण पर अभी भी पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया है, जहां बायोमास जलाने और घरेलू प्रदूषण प्रमुख समस्याएं हैं।
वैश्विक स्तर पर, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) ने हाल ही में 47 मिलियन से अधिक लोगों की ओर से स्वच्छ हवा के लिए एक वैश्विक आह्वान किया है। यूपी की यह पहल इस दिशा में एक सकारात्मक कदम है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि दीर्घकालिक सफलता के लिए नीतियों को जलवायु परिवर्तन और स्वास्थ्य लाभों के साथ जोड़ना होगा।
यूपी की साफ हवा योजना न केवल पर्यावरण के लिए, बल्कि आर्थिक विकास के लिए भी महत्वपूर्ण है। EPA के अनुसार, प्रदूषण नियंत्रण में निवेश से प्रति 1 रुपये पर 30 रुपये का आर्थिक लाभ होता है। यह योजना न केवल यूपी के नागरिकों के स्वास्थ्य को बेहतर बनाएगी, बल्कि पर्यटन और निवेश के लिए भी राज्य को और आकर्षक बनाएगी।
Disclaimer: यह लेख हाल के समाचारों, सरकारी घोषणाओं, और विश्वसनीय स्रोतों जैसे Clean Air Fund और WHO की रिपोर्ट्स पर आधारित है। जानकारी को सटीक और ताजा रखने का प्रयास किया गया है, लेकिन नीतिगत बदलाव और फंड आवंटन में बदलाव संभव है।