“उत्तर प्रदेश में नए वन्यजीव अभयारण्य इको-टूरिज्म को बढ़ावा दे रहे हैं। सोहागीबरवा और डॉ. भीमराव अंबेडकर अभयारण्य जैसे क्षेत्र जैव-विविधता संरक्षण के साथ पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। ये अभयारण्य स्थानीय समुदायों को रोजगार और प्रकृति संरक्षण के लिए प्रोत्साहित कर रहे हैं। जानें, कैसे यूपी 2025 में इको-टूरिज्म का नया केंद्र बन रहा है।”
उत्तर प्रदेश में इको-टूरिज्म की नई शुरुआत: वन्यजीव अभयारण्यों का उदय
उत्तर प्रदेश, जो अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए जाना जाता है, अब इको-टूरिज्म के क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रहा है। हाल के वर्षों में, राज्य सरकार ने जैव-विविधता संरक्षण और पर्यावरणीय स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए कई नए वन्यजीव अभयारण्य स्थापित किए हैं। इनमें सोहागीबरवा वन्यजीव अभयारण्य और डॉ. भीमराव अंबेडकर अभयारण्य प्रमुख हैं, जो न केवल वन्यजीवों की रक्षा कर रहे हैं, बल्कि पर्यटकों के लिए नए अवसर भी खोल रहे हैं।
सोहागीबरवा वन्यजीव अभयारण्य, जो महराजगंज जिले में स्थित है, हाल ही में चर्चा में रहा है। इस अभयारण्य में पुरातात्विक उत्खनन के निर्देश दिए गए हैं, जिससे यह क्षेत्र न केवल वन्यजीव प्रेमियों बल्कि इतिहास और पुरातत्व में रुचि रखने वालों के लिए भी आकर्षक बन रहा है। यह अभयारण्य बाघ, तेंदुआ और विभिन्न प्रजातियों के पक्षियों का घर है। इसके अलावा, यह स्थानीय समुदायों को रोजगार के अवसर प्रदान कर रहा है, जैसे गाइड, होमस्टे और हस्तशिल्प बिक्री, जो इको-टूरिज्म के सिद्धांतों को मजबूत करते हैं।
वहीं, डॉ. भीमराव अंबेडकर अभयारण्य, जो सागर जिले में 258.64 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में अप्रैल 2025 में स्थापित हुआ, भारत का 100वां वन्यजीव अभयारण्य है। यह अभयारण्य जैव-विविधता संरक्षण के साथ-साथ इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए बनाया गया है। यहां जंगल सफारी, बर्डवॉचिंग और प्रकृति ट्रेल्स जैसी गतिविधियां पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं। यह अभयारण्य स्थानीय लोगों को प्रशिक्षित गाइड और संरक्षण कार्यों में शामिल करके सामुदायिक विकास को भी प्रोत्साहित कर रहा है।
उत्तर प्रदेश इको-टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड के अतिरिक्त निदेशक प्रखर मिश्रा के अनुसार, राज्य में इको-टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए कई पहल की जा रही हैं। इनमें इको-साइट टूर, युवा जागरूकता कार्यक्रम और विरासत स्थलों का संरक्षण शामिल है। ये पहल न केवल पर्यटकों को प्रकृति के करीब लाती हैं, बल्कि स्थानीय समुदायों को आर्थिक रूप से सशक्त भी बनाती हैं।
इन अभयारण्यों के माध्यम से उत्तर प्रदेश ने 2025 में इको-टूरिज्म के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। ये क्षेत्र न केवल वन्यजीवों के लिए सुरक्षित आश्रय प्रदान करते हैं, बल्कि पर्यटकों को प्रकृति के साथ एक गहरा संबंध बनाने का अवसर भी देते हैं। जंगल सफारी, बर्डवॉचिंग और स्थानीय संस्कृति का अनुभव जैसे विकल्प पर्यटकों को आकर्षित कर रहे हैं। इसके अलावा, इन अभयारण्यों में सतत पर्यटन प्रथाओं को अपनाया जा रहा है, जैसे कि सीमित संख्या में पर्यटकों की अनुमति देना और पर्यावरण-अनुकूल प्रथाओं को प्रोत्साहित करना।
हालांकि, इन अभयारण्यों के सामने कुछ चुनौतियां भी हैं। मानव-वन्यजीव संघर्ष, अवैध शिकार और अतिक्रमण जैसी समस्याएं संरक्षण प्रयासों को प्रभावित कर सकती हैं। इनसे निपटने के लिए सरकार और स्थानीय समुदाय मिलकर काम कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, सोहागीबरवा में स्थानीय लोगों को संरक्षण गतिविधियों में शामिल किया जा रहा है, ताकि वे वन्यजीवों की रक्षा में सक्रिय भूमिका निभा सकें।
इको-टूरिज्म न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा देता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूत करता है। उत्तर प्रदेश के ये नए अभयारण्य 2025 में देश के इको-टूरिज्म मानचित्र पर एक नया अध्याय जोड़ रहे हैं। पर्यटकों के लिए यह एक सुनहरा अवसर है कि वे प्रकृति की गोद में समय बिताएं और संरक्षण के महत्व को समझें।
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