यूपी की स्मार्ट सिटी में प्रदूषण नियंत्रण के लिए नई वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग सिस्टम लागू किए गए हैं। कानपुर और लखनऊ सहित कई शहरों में 1370 सेंसर लगाए गए हैं, जो रियल-टाइम डेटा प्रदान करते हैं। यह तकनीक प्रदूषण स्रोतों की पहचान और समाधान में मदद करेगी, जिससे स्वच्छ हवा और बेहतर स्वास्थ्य सुनिश्चित होगा।
यूपी में प्रदूषण मुक्त शहरों की ओर कदम: नई मॉनिटरिंग तकनीक
उत्तर प्रदेश, जो भारत के सबसे अधिक आबादी वाले राज्यों में से एक है, अब प्रदूषण के खिलाफ जंग में नई तकनीक का सहारा ले रहा है। हाल ही में, IIT Kanpur द्वारा विकसित और संचालित भारत का सबसे बड़ा वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग नेटवर्क शुरू किया गया है। इस नेटवर्क में उत्तर प्रदेश और बिहार के हर ब्लॉक में एक सेंसर शामिल है, जिसके तहत कुल 1370 सेंसर लगाए गए हैं। ये सेंसर PM2.5, PM10, सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), और नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) जैसे प्रदूषकों की रियल-टाइम निगरानी करते हैं।
कानपुर, लखनऊ, आगरा, और गाजियाबाद जैसे शहर, जो लंबे समय से वायु प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं, अब इस तकनीक से लाभान्वित होंगे। उदाहरण के लिए, आगरा में हाल ही में एक जांच में पाया गया कि कई मॉनिटरिंग स्टेशन हरे-भरे इलाकों में स्थापित किए गए थे, जो शहर के प्रदूषित क्षेत्रों की सटीक स्थिति को नहीं दर्शाते। अब नए सेंसर इन कमियों को दूर करने में मदद करेंगे, खासकर औद्योगिक क्षेत्रों जैसे नुनिहाई और फाउंड्री नगर में।
ये सेंसर न केवल प्रदूषण के स्तर को मापते हैं, बल्कि मौसम संबंधी डेटा जैसे हवा की गति, दिशा, और तापमान को भी रिकॉर्ड करते हैं। यह डेटा प्रदूषण के स्रोतों को समझने और नीतिगत निर्णय लेने में महत्वपूर्ण है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिस्टम विशेष रूप से सर्दियों में उपयोगी होगा, जब दिल्ली और यूपी के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर “गंभीर” श्रेणी में पहुंच जाता है।
यूपी सरकार ने National Clean Air Programme (NCAP) के तहत इन सेंसरों का उपयोग कर 2024 तक PM2.5 और PM10 के स्तर को 20-30% तक कम करने का लक्ष्य रखा है। इसके अलावा, स्मार्ट सिटी परियोजनाओं में ड्रोन और आउटडोर एयर प्यूरीफायर जैसे नवाचार भी शामिल किए जा रहे हैं। Prana Air जैसे संगठन इन सेंसरों के साथ डेटा डैशबोर्ड प्रदान कर रहे हैं, जो आम जनता को भी प्रदूषण की जानकारी देता है।
कानपुर, जो 2019 में PM2.5 के मामले में देश का चौथा सबसे प्रदूषित शहर था, अब इन सेंसरों के जरिए बेहतर निगरानी और नियंत्रण की दिशा में काम कर रहा है। स्थानीय प्रशासन ने वाहन उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण, और निर्माण धूल को कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे कि सड़कों पर मैकेनिकल स्वीपिंग और हरित क्षेत्रों का विकास।
हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि केवल मॉनिटरिंग पर्याप्त नहीं है। दिल्ली और यूपी के शहरों में प्रदूषण का स्तर WHO के मानकों से कई गुना अधिक है। इसलिए, सख्त उत्सर्जन नियमों, सार्वजनिक परिवहन को बढ़ावा देने, और जैव ईंधन के उपयोग को कम करने जैसे कदमों की जरूरत है।
यह नई तकनीक न केवल शहरों को स्वच्छ बनाने में मदद करेगी, बल्कि नागरिकों को अपने आसपास की हवा की गुणवत्ता के बारे में जागरूक भी करेगी। यूपी के ये प्रयास अन्य राज्यों के लिए भी एक मिसाल बन सकते हैं।
Disclaimer: यह लेख रियल-टाइम डेटा और हाल के समाचार स्रोतों पर आधारित है। जानकारी को विश्वसनीय स्रोतों जैसे CPCB, IQAir, और IIT Kanpur से लिया गया है। पाठकों को सलाह दी जाती है कि वे नवीनतम अपडेट के लिए आधिकारिक वेबसाइट्स और ऐप्स जैसे CPCB AQI Dashboard और Prana Air की जांच करें।